मेरी उमर नहीं उतनी, जितनी बड़ी उनकी सो़च,
मेरे सपने नहीं उतने, जितने मजबूत उनके असुल,
मेरी सात जन्म नहीं उतने, जितना मुश्किल उनका एक जन्म,
मेरा अस्तित्व ना होता... अगर “गाँधी परिवार में “मोहन” पेंदा ना हुआ होता,
मेरी यह जिंदगी – जिंदगी ना होती... अगर उन्होंने अपनी छड़ी का जोर ना चलाया होता,
उनमे थी ऐसी कशिश, दूसरा ढूंढे भी ना मिले ब्रह्माण्ड में,
किया जो उन्होंने... हुआ असर कुछ ऐसा,
हुआ यकीन; होता होंगा रब भी कुछ ऐसा,
दिखाई प्यार की ताकत,
सिखाया कैसे जिया जाए दूसरे की खातिर,
पूजा ना सिर्फ उन्हे इस धरती पे,
हुआ असर उनका पूरी दुनिया पे,
जिए जिंदगी आपने ही असूलो पे,
दलाई जीत उनपे चलते हुए,
और आज जी रही है कितनी ही ज़िंदगिया इसी के फल्सवरूपो से,
उन्हे याद कर... होता है अपने जीने पे नाज़,
क्यूंकि... यह जान इतनी है खास,
इसके पीछे बहा है खून उस शख्श का,
बनाने वाला भी पूजता होंगा उसे,
होता होंगा उसे भी खुद पे नाज़,
हम में एक वो खुद ना हो आज,
मगर जिंदा रहे उनकी अहिंसा की आंच,
जिससे बचा रहेंगा इंसानियत पे विशवास,
और रहे उनके लिए हमेशा इज्ज़त का भाव,
रहे दुश्मन के लिए भी प्रेम का भाव,
और गाते रहेंगे हम – “हमारा देश महान” का राग,
साबरमती के संत तुने कर दिखाया कमाल,
“जय हिंद! जय हिंद! जय हिंद!”
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